OD Account in Hindi-CC Account in Hindi-OD account kya hai-OD ACCOUNT

OD and CC account

OD account kya hai-OD Account in HindiOverdraft Kya Hai-OD ACCOUNT

OD account meaning-ओवरड्राफ्ट(OD account kya hai) क्या होता है? इस सुविधा के अनुसार आप अपने बैंक में जमा राशि से ज्यादा से ज्यादा पैसे निकाल सकते हैं इसकी एक अलग प्रक्रिया होती है और बैंक की कुछ शर्तों का पालन करना पड़ता है। उसके बाद ही आप बैंक की ओवरड्राफ्ट सुविधा का पूरा लाभ ले सकते है आइए विस्तार से जानते हैं कि बैंक ओवरड्राफ्ट(OD ACCOUNT) कैसे मिल सकता है? और किस किस को ओवर ड्राफ्ट मिल सकता है? बैंक ओवरड्राफ्ट क्या हैं?

इस बैंक ओवरड्राफ्ट(OD account kya hai) ओवरड्राफ्ट, बैंक द्वारा दी गई एक सुविधा है जिसके अनुसार अगर आपके खाते में शून्य पैसे हो तो भी आप अपने बचत खाते या चालू खाते से पैसे आसानी से निकाल सकते हैं। यह सुविधा लगभग हर बैंक के द्वारा अपने ग्राहकों को दी जाती है।

ओवरड्राफ्ट(OD account kya hai) एक तरह से अल्पावधि ऋण है जो कि ग्राहकों को एक निश्चित समय सीमा के पहले चुकाना पड़ता है। ओवर ड्राफ्ट लेते समय ग्राहकों को ली गयी कुल रकम पर बैंक को कुछ व्याज भी देना होता है। इस सुविधा के द्वारा कस्टमर अपने खाते से जीरो बैलेंस के बाद भी बैंक द्वारा तय की गयी रकम की सीमा तक पैसा निकाल सकता है। कस्टमर जितना पैसा प्रयोग करने के लिए निकालेगा उस पैसे पर कस्टमर को ब्याज देना होता है।

ओवरड्राफ्ट(OD ACCOUNT) कितना प्रकार का होता है? Types of Overdraft

अधिकृत ओवरड्राफ्ट:-

इस तरह के ओवर ड्राफ्ट(OD Account) पूर्ण नियोजित अर्थात व्यवस्थित होते हैं अधिकृत तौर पर ड्राफ्ट में बैंक और व्यक्ति के बीच में पहले से ही स्वीकृति होती है कि वह व्यक्ति बैंक से एक निश्चित सीमा में ही ओवरड्राफ्ट के पैसे निकाल सकता है इसके लिए उन्हें कुछ सेवा शुल्क देना पड़ता है और यह शुल्क प्रतिदिन हफ्ते में या महीने में भी दिया जा सकता है। मुख्य तौर पर अधिकृत ओवरड्राफ्ट को चुना जा सकता है क्योंकि इसमें सभी चीजें व्यवस्थित होती है लेकिन कई बार यह महंगी हो सकती है तो इससे सावधान रहना आवश्यक है।

अनाधिकृत ओवरड्राफ्ट:-

इस तरह के ओवर ड्राफ्ट(OD ACCOUNT) में कोई पूर्ण व्यवस्था नहीं होती है और यह सब ओवरड्राफ्ट अनियोजित होते हैं इन ओवर ड्राफ्ट में आप बैंक और आपके बीच हुए समझौते से ज्यादा ओवर ड्राफ्ट की रकम यदि निकालते हैं तो आपको बाद में कुछ शुल्क देना आवश्यक होता है। इसमें अतिरिक्त शुल्क की मात्रा काफी ज्यादा होती है जो कि इस ओवर ड्राफ्ट को और भी महंगा बना देता है।

अब हम बात करते हैं ओवरड्राफ्ट(OD ACCOUNT) किस किस रूप में लिया जा सकता है। यदि आपने संपत्ति के अगेंस्ट ओवरड्राफ्टलिया है और अगर आप ऋण राशि निर्धारित समय पर चुकाने में असफल रहते हैं तो ऋणदाता के पास आपकी संपत्ति को नीलाम करने का हक होता है। 

ओवरड्राफ्ट(OD account) अकाउंट पर व्याज का कैलकुलेशन कैसे होता है ?

जब भी आपको पैसे की जरूरत होती है तो राशि सीधे आपके बैंक खाते में ओवरड्राफ्ट के रूप में भेज दिया जाती है। अपने खाते पर बैंक से ओवरड्राफ्ट लेने पर आप अपने खाते में बकाया राशि को बढ़ाते रहते हैं और जैसे ही आप अपने खाते में राशि जमा करते हैं तो वह अपने आप ही बैंक द्वारा आपके खाते से बकाया राशि काट ली जाती है, जब तक की ओवरड्राफ्ट की रकम पूरी नहीं हो जाती है।

अपने बैंक से जितनी भी ओवरड्राफ्ट(OD ACCOUNT) राशि ली है उस पर ब्याज की गणना हर रोज़ की जाती है क्योंकि अगर कर्ज लेने वाला, बैंक में राशि जमा करवाता है तो बैंक बिना बताए उस राशि को उसके द्वारा ली गई ओवरड्राफ्ट राशि को कम करने में इस्तेमाल कर सकता है। इसलिए ओवर ड्राफ्ट की राशि कम होती जाती है। इसी कारण से ओवर ड्राफ्ट की रकम पर ब्याज की गणना रोजाना की जाती है, क्योंकि ब्याज की राशि रोजाना बदल सकती है।

व्यापारियों के लिए ओवरड्राफ्ट(OD ACCOUNT) – Overdraft Account For Self Employed

ओवर डॉक्टर की सुविधा बिज़नेस व्यापारियों के लिए भी बहुत ही लाभदायक होता है। ओवरड्राफ्ट(OD ACCOUNT) व्यापारियों के लिए एक जीवन दान की तरह होता है। अगर किसी व्यापारी के बैंक खाते में राशि समाप्त हो जाए तो वह व्यापारी ओवर ड्राफ्ट का उपयोग करके पैसे कुछ समय के लिए ले सकता है। यह सुविधा मध्यम श्रेणी के व्यापारियों के लिए सबसे ज्यादा लाभदायक होती है।

व्यापारी इस सेवा का इस्तेमाल तभी कर सकते हैं जब उनके बैंक खाते में जमा राशि जीरो हो और उन्हें लेन देन में ज्यादा रकम की आवश्यकता है तो ऐसी स्थिती में बैंक के द्वारा व्यापार ओवरड्राफ्ट(OD ACCOUNT) सुविधा ग्राहकों के लिए कारगर सिद्ध होती है और उसे निर्धारित समय तक आप चुका भी सकते हैं हालांकि इस राशि पर आपको कुछ ऋण देना होता है।

सीसी अकाउंट क्या है?- CC Account Kya Hai?

हम बात करने वाले हैं कैश क्रेडिट और ओवरड्राफ्ट फैसिलिटीज के बारे में अब देखिए अगर आपको बिज़नेस चलाते हैं तो पैसों की रिक्वायरमेंट हर बिज़नेस में चाहिए होती है। ऐसे इंडीविजुअल भी हम लोगों को पैसों की रिक्वायरमेंट पड़ जाती है।

कैश क्रेडिट(cc account meaning) एक तरीके का शॉर्ट टर्म लोन फैसिलिटी है जो बैंक द्वारा किसी भी बिज़नेस के एक कम्पलीट वर्किंग कैपिटल साइकिल में आने वाले खर्चे को फाइनेंस करती है। जैसे एक मैन्युफैक्चरर को कच्चा मैटेरियल खरीदने से लेकर, सामान बनाकर बेचने और बेचकर पैसा वापस पाने तक के बीच में जो भी समय लगता है उसे एक मैन्युफैक्चरर की कम्पलीट वर्किंग कैपिटल साइकिल कहते है।  

कैश क्रेडिट(cc account) की जरुरत क्यू है?

कैश क्रेडिट(cc account) और ओवरड्राफ्ट आखिर होता क्या है कैश क्रेडिट(cc account) की अगर हम बात करें तो ये एक तरीके का शॉर्ट टर्म लोन होता है जो जेनरली कंपनीस को या बिज़नेस को प्रोवाइड किया जाता है उनकी वर्क कैपिटल रिक्वायरमेंट के लिए वर्किंग कैपिटल रिक्वायरमेंट का मतलब है मान लीजिए आपकी कोई मैनुफैक्चरिंग है आपको रॉ मटेरियल खरीदना पड़ता है उसके लिए पैसे नहीं है आपके पास तो वो एक आपकी रिक्वाइर्मन्ट हो सकती है फिर उसके बाद आपको स्टॉक्स मेंटेन करने के लिए कुछ टाइम पीरियड लग सकता है तब तक आपको अपने खर्चे चलाने होंगे।

उसके लिए भी आपको पैसों की जरूरत पड़ सकती है आपके रिसीवेबल्स हो सकते हैं तो अगर हम इसको एग्ज़ैम्पल से समझें मान लीजिए एक सोलर मैन्युफैक्चरिंग कंपनी है तो उसको अगर रॉ मटीरियल्स खरीदने के लिए पैसा चाहिए तो एक तो वहाँ उसकी रिक्वाइर्मन्ट आ जाती है।  उसके बाद वो इमीडियेटली तो बिक नहीं जाएगा। कच्चा माल पहले पहले वो प्रोसेसर करेगा। मैनुफैक्चर करेगा, तो उसे हम वर्क इन प्रोग्रेस में डालेंगे।

अब मान लीजिये कच्चा मटीरीअल आपका थोड़े टाइम तक वेयरहाउस में पड़ा रहेगा तो वो एक साइकिल होती है 20 दिन की साइकिल है।  मान लीजिए वो उसके बाद वर्क इन प्रोग्रेस से आपकी फिनिश्ड गुड्स में जाएगी तो इस तरीके के जब तक आपके पैनल बनेंगे तो उसका भी एक टाइम पीरियड होता है वो भी 30 दिन का पकड़ लेते हैं।  फिनिश गुड से लेके आपके इमीडिएट्ली तो बेच नहीं जाएंगे। जितनी भी पैनल्स है तो मान लेते हैं लेते हैं कि 45 दिन के अंदर मात्रा माल बिकता है कस्टमर तक पहुंचता है।  तो इस तरह से टोटल 110 दिन लग जाते है जो कच्चे माल से सामान बनाने और बेचकर पैसा वापस पाने को एक कम्पलीट बिज़नेस साइकिल कहते है। हम इसे ही वर्किंग कैपिटल साइकल भी बोलते है।

ओवरड्राफ्ट(OD account) क्या है ?

ओवरड्राफ्ट एक तरह से अल्पावधि ऋण है जो कि ग्राहकों को एक निश्चित समय सीमा के पहले चुकाना पड़ता है। ओवर ड्राफ्ट लेते समय ग्राहकों को ली गयी कुल रकम पर बैंक को कुछ व्याज भी देना होता है। इस सुविधा के द्वारा कस्टमर अपने खाते से जीरो बैलेंस के बाद भी बैंक द्वारा तय की गयी रकम की सीमा तक पैसा निकाल सकता है। कस्टमर जितना पैसा प्रयोग करने के लिए निकालेगा उस पैसे पर कस्टमर को ब्याज देना होता है।

ओवरड्राफ्ट(OD account) कितना प्रकार का होता है?

ओवरड्राफ्ट दो प्रकार का होता है।
1 :- अधिकृत ओवरड्राफ्ट
2 :- अनाधिकृत ओवरड्राफ्ट

सीसी अकाउंट (CC ACCOUNT KYA HAI) क्या है ?

कैश क्रेडिट एक तरीके का शॉर्ट टर्म लोन फैसिलिटी है जो बैंक द्वारा किसी भी बिज़नेस के एक कम्पलीट वर्किंग कैपिटल साइकिल में आने वाले खर्चे को फाइनेंस करती है। जैसे एक मैन्युफैक्चरर को कच्चा मैटेरियल खरीदने से लेकर, सामान बनाकर बेचने और बेचकर पैसा वापस पाने तक के बीच में जो भी समय लगता है उसे एक मैन्युफैक्चरर की कम्पलीट वर्किंग कैपिटल साइकिल कहते है।

अधिकृत ओवरड्राफ्ट क्या है ?

इस तरह के ओवर ड्राफ्ट पूर्ण नियोजित अर्थात व्यवस्थित होते हैं अधिकृत तौर पर ड्राफ्ट में बैंक और व्यक्ति के बीच में पहले से ही स्वीकृति होती है कि वह व्यक्ति बैंक से एक निश्चित सीमा में ही ओवरड्राफ्ट के पैसे निकाल सकता है इसके लिए उन्हें कुछ सेवा शुल्क देना पड़ता है और यह शुल्क प्रतिदिन हफ्ते में या महीने में भी दिया जा सकता है। मुख्य तौर पर अधिकृत ओवरड्राफ्ट को चुना जा सकता है क्योंकि इसमें सभी चीजें व्यवस्थित होती है लेकिन कई बार यह महंगी हो सकती है तो इससे सावधान रहना आवश्यक है।

OD account full form

ओवरड्राफ्ट अकाउंट

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जीएसटी क्या है?-GST KYA HAI-GST IN HINDI

GST KYA HAI

जीएसटी(goods and service tax) के बारे में जाने :-

इनपुट जीएसटी क्या है? आउटपुट जीएसटी(OUTPUT GST) क्या है? चार टाइप की जो सीजीएसटी(CGST), एसजीएसटी(SGST) आईजीएसटी(IGST), यूटीजीएसटी(UTGST) ये सब क्या है ? जीएसटी के स्लैब कितने होते हैं?

जीएसटी कहता है कि एक देश एक टैक्स होना चाहिए लेकिन ये अधूरा सत्य है गवर्नमेंट के पास पैसे का एक ही स्रोत है, वो टैक्स है अब टैक्स दो तरह से होता है एक डाइरेक्ट जो आदमी से लिया जाता है और एक इंडाइरेक्ट होता है जो किसी चीज़ की खरीद बिक्री पर लगता है। इंडाइरेक्ट टैक्स भी कई तरह के होते थे कस्टम ड्यूटी होती थी कोई विदेश से सामान मांगा दिया तो एक्साइज ड्यूटी सर्विस टैक्स सेल टैक्स, ये इंडाइरेक्ट टैक्स जो है यहाँ इन 17 टैक्स वापस मर्ज कर दिया गया और जो ये इंडाइरेक्ट टैक्स था इंडाइरेक्ट टैक्स को खत्म करके इसी जगह पर लाया गया जीएसटी।

जीएसटी भी एक इंडाइरेक्ट टैक्स होगा तो आप बताइए क्या ये वन नेशन वन टैक्स हुआ ये तो केवल इंडाइरेक्ट टैक्स को जीएसटी में बदल दिया गया।  डाइरेक्ट टैक्स में कोई बदलाव नहीं है आज भी आपको डाइरेक्ट टैक्स देना है सेंट्रल गवर्नमेंट का कॉरपोरेशन टैक्स होता है निगम का टैक्स वो काफी ज्यादा इससे इनकम होता है तो डाइरेक्ट टैक्स में कोइ बदलाव नहीं हुआ है।  इंडाइरेक्ट टैक्स है जो आपको जीएसटी है, और ये खरीद बिक्री पर आपको देना पड़ता है अब बात करते हैं कि जीएसटी किसको देना पड़ेगा, तो तीन ही लोग को देना पड़ेगा ध्यान से समझिए जिनका सालाना टर्नओवर लेनदेन 20,00,000 का है।

उसके बाद एक और चीज़ होता है ऑनलाइन अगर आप ₹10 का भी होगा तो आपको जीएसटी लगेगा जैसे फ्लिपकार्ट से कोइ सामान मंगवाएंगे तो उस पर जीएसटी लगेगा।

ये 20,00,000 का जो रेसियो है ये पहाड़ी क्षेत्रों जैसे अरुणाचल प्रदेश वगैरह वहाँ 20,00,000 के बिज़नेस का मतलब बहुत बड़ा दुकान हो जाएगा तो वह पहाड़ी एरिया में जनसंख्या कम होती है वहाँ पर कुछ पहाड़ी वाला एरिये बाई इसकी कैटेगरी 10,00,000 रखी गई है।

जीएसटी के टोटल चार टाइप है।

सीजीएसटी(CGST):- सीजीएसटी का मतलब सेंट्रल जीएसटी

एसजीएसटी(SGST):- एसजीएसटी का मतलब स्टेट जीएसटी

यूटीजीएसटी(UTGGT):- यूटी का मतलब है केंद्र शासित यूनियन टेरिटरी का जीएसटी है

आइजीएसटी(IGST):- इंटिग्रेटेड जीएसटी आईजीएसटी मतलब जैसे एक राज्य से दूसरे राज्य में ले जाएंगे सामान बेचने तो उसे पर आइजीएसटी लगेगा।

यदि आप सेम स्टेट में कोई बिज़नेस कर रहे हैं तो आपको सीजीएसटी और स्टेट जीएसटी/ यूटी जीएसटी देना होगा। यदि आप एक राज्य से दूसरे राज्य में सामान बेचते है तो आईजीएसटी लगेगा।

 जैसे आप कोइ सामान खरीदते है तो उस पर 18% जीएसटी लगेगा।  इसमें एसजीएसटी 9% है और सीजीएसटी 9% यानी दोनों जोड़कर 18 होता है। ये हर एक स्टेट में यही रूल लगता है।

लेकिन वैसे राज्य जो यूनियन टेरिटरी जैसे जम्मू कश्मीर, लद्दाख, पांडिचेरी, दिल्ली, तो दिल्ली क्या है, एक यूनियन है। अब दिल्ली ये जो है वो तो सेंट्रल गवर्नमेंट के अंदर है अगर आप दिल्ली में सामान बेच रहे हैं तो सेंट्रल गवर्नमेंट के अंडर में आएँगे तो दिल्ली आपसे क्या लेगा आपसे सेंट्रल गवर्नमेंट की सीजीएसटी और दिल्ली जीएसटी तो ले ही नहीं सकता क्योंकि वो स्टेट तो है ही नहीं है दिल्ली जो है वो यूनियन टेरिटरी हैं तो केवल यहाँ यूटीजीएसटी लगेगा।

अगर एक राज्य से दूसरे राज्य में सामान चला गया था तो उसे कहते हैं आईजीएसटी यानी इंटीग्रेटेड जीएसटी, इंटिग्रेटेड जीएसटी तभी लगेगा जब एक राज्य से दूसरे राज्य में आपका सामान जाएगा यदि कोई सामान राजस्थान में बन रहा है और वो चला आया आपका बिकने के लिए उत्तर प्रदेश।  इस कंडीशन में आईजीएसटी चार्ज होगा जो केंद्र सरकार के पास जाएगा जो बाद में केंद्र यूपी सरकार को दे देगा । क्योकी सामान को यूपी में बेचा रहा है।  इसी लिए डेस्टिनेशन जीएसटी भी कहते हैं, क्योंकि ये वही लगता है जहाँ सामान को आदमी खरीदता है। इससे फायदा क्या हुआ, देखिए राजस्थान को फायदा ये हुआ कि वहाँ सामान बना उसका रोजगार वहा के लोगो को मिला और यूपी को फायदा ये हुआ कि सामान अल्टीमेट यहाँ बिकने आया था इसलिए इसको टैक्स मिल गया।

जीएसटी के लाभ-GST KE LABH-GST KE FAYADE

आप पहले पुराना तरीका समझे क्या होता था हर राज्य जो थे अपने अपने मर्जी से टैक्स लेते थे यू पी लेता था 12% सर्विस टैक्स तो बिहार लेता था 14% अब आप बताइए किसी सामान पर अगर यूपी में 12% टैक्स है तो वही सामान पर अगर बिहार में 14% है तो बिहार में सामान महंगे हो जाएंगे इसलिए बिहार के लोग समीपवर्ती जिला जो यूपी से सटा रहता था वो सामान खरीदने यूपी चले जाते थे।

पहले क्या होता था सामान जहा बनाता था टैक्स उसी राज्य को मिलता था सिर्फ। जैसे गुजरात सरकार होशियार थी। इसमें गुजरात सरकार ने कहा कि भाई हम टैक्स सबसे कम लेंगे हमारे यहाँ जो भी कंपनी आएगी सामान बनाने के लिए। पहले सारा सारा का सारा सामान गुजरात में बनाती थी तो सेंट्रल गवर्नमेंट को दे दी थी एक्साइज ड्यूटी और गुजरात को देती थी। सामान  गुजरात से बना बना के पूरा हिंदुस्तान बेचती थी।  बाकी राज्य चुपचाप देखते रहते थे। गुजरात से आया है, हमको ना टैक्स मिलाना ना कुछ अब फायदा होगा। इसीलिए पहले के जमाने में फैक्ट्रियां गुजरात महाराष्ट्र मेँ भाग गयी गुजरात महाराष्ट्र गवर्नमेंट के पास बहुत पैसा था उन लोगों ने अपना टैक्स का जो रेसियो कम कर दिया था दिया।

जीएसटी(GST) आ जाने से हर जगह टैक्स बराबर है तो हम गुजरात में बना के हम असम में क्यों बेचेंगे।  हमारा ट्रांसपोर्ट का खर्च आएगा। अब  हम एक छोटा सा कारखाना गुजरात में लगा देते हैं जो इस एरिया को कवर करेगा। और असम में भी लगा देते हैं इस एरिया को डेवलप करेगा। 

आप पूरे हिन्दुस्तान में कही लीजिए सेम ब्रैंड का सामान लीजिये आपको एक ही दाम में मिलेगा। अगर जैसे कार है कोई लग्जरी कार 28% टैक्स है आप दिल्ली में लीजिए या कन्याकुमारी कश्मीर कहीं भी लीजिए दाम एक ही होगा। क्योंकि जीएसटी में आ गया है।

अब पेट्रोल जीएसटी(GST) के दायरे में नहीं आया। आप दिल्ली में पेट्रोल लेंगे तो अलग दाम होगा, गुजरात मिलेंगे तो अलग हो गया। शराब जीएसटी में नहीं आया दिल्ली में शराब का रेट अलग हैं यूपी में शराब का रेट अलग है।

इनपुट जीएसटी(INPUT GST) और आउटपुट जीएसटी (OUTPUT GST) क्या है ?

आउट जीएसटी और इनपुट जीएसटी जैसे मान लीजिए कि हम एक दुकानदार हैं हम कोई सामान खरीद के लाएं ₹100 का सामान खरीदकर लाए तो उसपे 10% जीएसटी है तो हमको वो सामान कितने का पड़ेगा ₹110 यहाँ हमने जीएसटी के रूप में कितना दे दिया ₹10 यहाँ दे दिया। अब उसी सामान को हम दूसरे को बेचेंगे तो हमको इसमें प्रॉफिट भी होना चाहिए।  हम सोचेंगे हमको खुद 110 का पड़ा है ये काम करते है हम इसको ₹150 में बेचेंगे जो खरीदेगा हमसे वो फिर हमको जीएसटी देगा।  इस पर 10% तो 150 में 10% जीएसटी जोड़ देंगे तो हमको मिल गया ₹165 अब आप बताइए ₹10 हम यहाँ जीएसटी दिए हैं अपने जेब से और वो बंदा जो हमसे खरीदा है वो भी 10% यानी ₹15 यहाँ जीएसटी दे दिया है एक 150 का 10% तो जीएसटी ₹15, .तो क्या फिर ₹15 भी गवर्नमेंट को दें देना होगा। ऐसा कुछ भी नहीं ही हमने ₹10 पहले दिया अब जो ₹15 का जीएसटी है हम ₹15 नहीं देंगे क्योकि हमने ₹10 पहले दे दिया है अब हम जीएसटी ₹15 में से ₹10 घटा देंगे जो की ₹5  है वो देंगे इस तरह से आउट जीएसटी हमारा ₹10 हुआ और इन जीएसटी ₹5 हुआ।  अब हमने दोनों जीएसटी मिलाकर ₹10 और ₹5 → ₹15 दे दिया।

तो अगर कोइ जीएसटी चोरी कर लिया तो उसको को 5 साल का जेल होगा।

राष्ट्रपति ने जीएसटी बिल पर साइन कब किया था तो 8 सितंबर 2016 को तो 8 सितंबर 2016 को राष्ट्रपति ने साइन कर दिया क्योंकि इसमें राज्यों के भी हित को रखा गया था।

इसलिए संविधान है कि राष्ट्रीय राज्य भी इसमें क्या करेंगे सहमति देंगे सबसे पहले कौन से राज्य में सहमति दिया था तो असम ने सबसे पहले और  बाद में जम्मू कश्मीर इसे लागू कर दिया गया सबको पता है। 1 जुलाई 2017 से पूरे देश में ये हमारा जीएसटी लागू हो गया। जीएसटी में पांच मूल दरें शामिल हैं: 0 प्रतिशत, 5 प्रतिशत, 12 प्रतिशत, 18 प्रतिशत और 28 प्रतिशत।

GST official website(register for gst)—> जीएसटी वेबसाइट (gst registration-gst registration online)

राष्ट्रपति ने जीएसटी बिल पर साइन कब किया था?

8 सितंबर 2016 को राष्ट्रपति ने जीएसटी बिल पर साइन किया।

जीएसटी सबसे पहले किस राज्य में लागू हुआ ?

असम जीएसटी लागू करने वाला पहला राज्य बना।

सबसे बाद में जीएसटी लागू करने वाला राज्य कौन सा है ?

जम्मू एंड कश्मीर

जीएसटी पुरे देश में कब लागू हुआ ?

1 जुलाई 2017 से पूरे देश में ये हमारा जीएसटी लागू हो गया।

जीएसटी बिल को पारित करने के लिए कौन सा संवैधानिक संशोधन किया गया है?

जीएसटी बिल को पारित करने के लिए 101वां संवैधानिक संशोधन किया गया है।

GST परिषद में कुल सम्मिलित सदस्यों की संख्या कितनी है?

33

भारत का GST किस देश के मॉडल पर आधरित है?

कनाडा

GST पंजीकरण में कुल कितने अंक है?

15

वार्षिक टर्नओवर कितने से अधिक होने पर GST भुगतान अनिवार्य है ?

20 लाख

जीएसटी में टैक्स की कितनी दरें है?

जीएसटी में पांच मूल दरें शामिल हैं: 0 प्रतिशत, 5 प्रतिशत, 12 प्रतिशत, 18 प्रतिशत और 28 प्रतिशत।

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MSME क्या है ? – MSME KYA HAI?

MSME क्या है ?

MSME को माइक्रो स्माल मीडियम इंटरप्राइजेज (MICRO SMALL MIDIUM INTERPRISES) कहते है जिसे हिंदी में सूक्ष्म लघु माध्यम उद्योग कहते है। MSME में मैन्युफैक्चरिंग एंड सर्विसेज क्षेत्र दोनों को लिया जाता है। इन्वेस्टमेंट और टर्नओवर के आधार पर हम दोनों क्षेत्र को माइक्रो, सूक्ष्म और स्माल क्षेत्र में विभाजित कर सकते है। 

MSME का हमारे समाज में बहुत बड़ा योगदान है। हमारे देश में 45% से ज्यादा रोजगार MSME क्षेत्र से आता है। हमारे देश में 50% से ज्यादा एक्सपोर्ट MSME से होता है। हैवी उद्योग के मैन्युफैक्चरिंग का 80% उत्पादन MSME  के द्वारा होता है। 

 यदि MSME ठप्प हो गया तो देश का आधी जनता बेरोजगार हो जायेगी। हमारे देश MSME के ऊपर ज्यादा निर्भरता है। देश के अधिकाँश लोगो की रोजी रोटी MSME उद्योग से चलती है। 

MSME KYA HAI

MSME अधिनियम 2006

MSME उपक्रम की शुरुवात भारत सरकार द्वारा  2006 में की गयी थी। जिससे MSME  क्षेत्र को बढ़ावा मिलेगा और लोगो को अधिक से अधिक रोजगार मिलेगा। MSME में मैन्युफैक्चरिंग और सर्विस सेक्टर को निम्न प्रकार से वर्गीकृत किया गया है। 

 उद्योग के प्रकार (2006 )मैनुफैक्चरिंग सेक्टरसर्विस सेक्टर
सूक्ष्म  उद्योग25 लाख तक10 लाख तक
लघु  उद्योग25 लाख से 5 करोड़ रुपये तक10 लाख से 2 करोड़ के बीच
मध्यम  उद्योग5 करोड़ से 10 करोड़ के बीचअधिकतम 5 करोड़ तक

MSME अधिनियम 2018

यह अधिनियम का प्रावधान  2006 से चल रहा था जिसे 2018 में संशोधन किया गया और MSME के प्रावधान में अधिक छूट के साथ नए व्यवस्था की गयी। जिसमे इन्वेस्टमेंट के साथ कंपनी के टर्न ओवर के को शामिल किया गया और टैक्स का निर्धारण किया गया। 

 उद्योग के प्रकार (2018  )टर्न ओवर 
सूक्ष्म  उद्योग5 करोड़ से कम सालाना टर्नओवर
लघु  उद्योग5 करोड़ से 75 करोड़ के बीच सालाना टर्नओवर
मध्यम  उद्योग75 करोड़ से 250 करोड़ के बीच सालाना टर्नओवर

MSME अधिनियम 2020

यह अधिनियम का प्रावधान  2018  से चल रहा था जिसे 2020  में कोरोना राहत पैकेज के साथ संशोधन किया गया और MSME के प्रावधान में अधिक छूट के साथ नए व्यवस्था की गयी। जिसमे इन्वेस्टमेंट के साथ कंपनी के टर्न ओवर के को शामिल किया गया और टैक्स का निर्धारण किया गया। 

Snoउद्योग के प्रकार (2020)टैक्स स्लैब मैनुफैक्चरिंग सेक्टर/सर्विस सेक्टर(इन्वेस्टमेंट ) मैनुफैक्चरिंग सेक्टर/सर्विस सेक्टर(टर्न ओवर) )
  
1सूक्ष्म  उद्योग8% 1 करोड़   5 करोड़ 
2लघु  उद्योग10% 10 करोड़  50 करोड़
3मध्यम  उद्योग12% 20 करोड़ 100 करोड़ 

MSME  स्कीम का लाभ उठाने के लिए भारत सरकार के वेबसाइट पर जाकर रजिस्ट्रशन(Msme registration online) करना होत्ता है।  रजिस्ट्रेशन के बाद आप MSME स्कीम का लाभ उठा सकते है।  सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्योग क्षेत्र का देश के विकास में बहुत महत्वपूर्ण योगदान है। लघु उद्योग क्षेत्र के योगदान को देखते हुए सरकारी बैंक के साथ ही साथ प्राइवेट क्षेत्र की नॉन बैंकिंग फाइनेंसियल कंपनियां (एनबीएफसी) भी कम ब्याज दर बिजनेस लोन प्रदान कर रही हैं।

MSME के योगदान :-

1 – MSME  के द्वारा हमारे देश के लोगो को  45% से ज्यादा का रोजगार मिलता है।  

2 :-  MSME  के द्वारा 50 % से ज्यादा एक्सपोर्ट किया जाता है। 

3 :- 80 % उद्योग के सामानो की मैन्युफैक्चरिंग ऍमएसऍमई के द्वारा होती है। 

4 :- 6500 से ज्यादा प्रोडक्ट हमारे देश में ऍमएसऍमई कंपनी के द्वारा बनायी जाती है। 

5 :- देश के विकाश(GDP) में 10 % का योगदान है।  

ऍमएसऍमई लोन क्या है और कैसे अप्लाई करे :-(MSME LOAN)

सरकार आपको ऍमएसऍमई लोन दे रही है जिसे आप आसानी के साथ ले सकते है। इसके लिए लिए आपको बैंक के कुछ आसान शर्तो को पालन होगा। एमएसएमई लोन को अप्लाई करने केलिए  3 साल पुरानी एमएसएमई रजिस्ट्रेशन अगर आपके पास है आपकी  25उम्र  से 55 साल के बीच में है यानी कि जो इंडिविजुअल एमएसएमई बिजनेस पर रजिस्टर्ड है 25 से 55 साल की उम्र का है और 3 साल पुराना आपका बिज़नेस है आप एमएसएमई लोन को अप्लाई करके एमएसएमई लोन की सुविधाओं का फायदा उठा सकते हैं। 

ऍमएसऍमई अप्लाई करने के लिए जरुरी डाक्यूमेंट्स :-

आवश्यक दस्तावेज: –
पहचान प्रमाणपहचान पत्रपैन कार्ड / ड्राइविंग लाइसेंस / पासपोर्ट / मतदाता/ आधार कार्ड
पता प्रमाणपासपोर्ट / ड्राइविंग लाइसेंस / मतदाता पहचान पत्र / आधार कार्ड / उपयोगिता बिल / बैंक विवरण / बैंक खाता पासबुक (अपडेट किया गया और 2 महीने से अधिक पुराना नहीं) )
स्वामित्व प्रमाणअनुबंध प्रति / बिजली बिल / शेयर प्रमाण पत्र के साथ रखरखाव बिल / नगर कर बिल / शेयर प्रमाण पत्र
व्यापार निरंतरता प्रमाण / कार्यालय पता प्रमाण / कंपनी केवाईसीदुकान स्थापना प्रमाण पत्र / कर पंजीकरण-वैट / सेवा कर / जीएसटी पंजीकरण/कंपनी पैन कार्ड 
फर्म संविधान (फर्म कॉन्स्टिटूशन )एमओए , एओए,  पार्टनर शिप डीड, जीएसटी पंजीकरण प्रमाणपत्र, कंपनी पैन कार्ड, MSME रजिस्ट्रशन पत्र  
वित्तीय(फाइनेंसियल )1. नवीनतम दो साल का वित्तीय (बैलेंस शीट, प्रॉफिट एंड लॉस , अचल संपत्ति, डेप्रिसिएशन,, सभी अनुसूची 2. नवीनतम टैक्स ऑडिट रिपोर्ट।
बैंकिंगपिछले बारह महीने का बैंक स्टेटमेंट (बिजनेस अकाउंट्स)
ऑफिस एड्रेस प्रूफ/ कंपनी केवाईसीदुकान और स्थापना प्रमाणपत्र/कर पंजीकरण-वैट/सेवा कर/जीएसटी पंजीकरण

ऍमएसऍमई में सब्सिडीज और इंसेंटिव क्या  है ?MSME SUBSIDY AND MSME INCENTIVE

सबसे पहले हम यह जानेंगे की  गवर्नमेंट सब्सिडी और इंसेंटिव में क्या डिफरेंस है ? सब्सिडी आपको नॉर्मली टैक्स पर छ्हूत मिलता है जैसे की आपका टैक्स स्लैब दस पर्सेंट है और सरकार आपसे 8 पर्सेंट टैक्स लेगी यानी की अपफ्रंट आपको दो परसेंट की छूट दे रही इसे हम सब्सिडी बोलेंगे। जबकि इन्सेंटिव में ये नहीं होता है।  इंसेंटिव में आपको टैक्स पूरा डेपोजिट करना होता है जिसे सरकार बाद में अपनी पालिसी के हिसाब से आपको टैक्स का कुछ हिस्सा वापस आरती जिसे इंसेंटिव कहते है।  

गवर्नमेंट सब्सिडी अगर इनडायरेक्ट टैक्सेस के फॉर्म में देती है तो आप में प्राइसिंग कम्पटीट कर सकते हैं मार्केट में। आप दूसरों से कम रेट में माल भेज सकते हैं या फिर अच्छी प्रॉफिट मार्जिन करके आप मार्केट में टिक सकते हैं। इनडायरेक्ट टैक्सेस से काफी ज्यादा बेनिफिट होता है। 

ऍमएसऍमई में सब्सिडीज और इंसेंटिव क्या  है ?

सबसे पहले हम यह जानेंगे की  गवर्नमेंट सब्सिडी और इंसेंटिव में क्या डिफरेंस है ? सब्सिडी आपको नॉर्मली टैक्स पर छ्हूत मिलता है जैसे की आपका टैक्स स्लैब दस पर्सेंट है और सरकार आपसे 8 पर्सेंट टैक्स लेगी यानी की अपफ्रंट आपको दो परसेंट की छूट दे रही इसे हम सब्सिडी बोलेंगे। जबकि इन्सेंटिव में ये नहीं होता है।  इंसेंटिव में आपको टैक्स पूरा डेपोजिट करना होता है जिसे सरकार बाद में अपनी पालिसी के हिसाब से आपको टैक्स का कुछ हिस्सा वापस आरती जिसे इंसेंटिव कहते है।  

ऍमएसऍमई के योगदान?

1 – ऍमएसऍमई के द्वारा हमारे देश के लोगो को 45% से ज्यादा का रोजगार मिलता है।
2 :- MSME के द्वारा 50 % से ज्यादा एक्सपोर्ट किया जाता है।
3 :- 80 % उद्योग के सामानो की मैन्युफैक्चरिंग ऍमएसऍमई के द्वारा होती है।
4 :- 6500 से ज्यादा प्रोडक्ट हमारे देश में ऍमएसऍमई कंपनी के द्वारा बनायी जाती है।
5 :- देश के विकाश(GDP) में 10 % का योगदान है।

पहला ऍमएसऍमई अधिनियम कब बना ?

पहला ऍमएसऍमई अधिनियम 2006 में बना।

ऍमएसऍमई का FULL FORM क्या है ?

माइक्रो स्माल मीडियम इंटरप्राइजेज

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